भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शौक़ की नुक्ता-दानियाँ न गईं / सिकंदर अली 'वज्द'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शौक़ की नुक्ता-दानियाँ न गईं
रात बीती कहानियाँ न गईं

हुस्न ने दी हज़ार बार शिकस्त
इश्‍क़ की लनतरानियाँ न गईं

नक़्श बन बन के रह गईं दिल में
सरसरी नौजवानियाँ न गईं

चेहरा-ए-ज़िंदगी की रौनक़ हैं
हौसलों की निशानियाँ न गईं

‘वज्द’ मायूसियों के ज़ोर में भी
अज़्म की कामरानियाँ न गईं