श्मशान में भी नहीं आती
शव
के जलने की दुर्गन्ध
धुएँ से आँखे भी नहीं
चिचिराती
शहर हिंसक होता जा रहा हैं
यह सच है
लेकिन
कहाँ हैं
मेरी सम्वेदनाएँ?
मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत
श्मशान में भी नहीं आती
शव
के जलने की दुर्गन्ध
धुएँ से आँखे भी नहीं
चिचिराती
शहर हिंसक होता जा रहा हैं
यह सच है
लेकिन
कहाँ हैं
मेरी सम्वेदनाएँ?
मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत