Last modified on 7 दिसम्बर 2011, at 17:52

श्याम की शोभा / रामनरेश त्रिपाठी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:52, 7 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश त्रिपाठी |संग्रह=मानसी / र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

श्याम के है अंग में तरंगित अनंत द्युति,
नित नित नूतन अकथनीय बात है।
नीलमनि कहना तो चित्त की कठोरता है,
भूले रजनी को तो कहे कि जलजात है॥
दृग से अधर तक दृष्टि न पहुँच पाती,
दृग में उधर आती नई करामात है।
जैसे जैसे ध्यान से हैं देखते समीप जाके
बार बार देखी अनदेखी होता ज्ञात है॥