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श्री गिरिराज वन्दना / यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'

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जय-जय-जय गिरिवर धरन, जय-जय-जय गिरिराज।
बंदों जुग-जुग जुग-चरन, राखन साखन लाज।।
राखन साखन लाज, नित्य माखन रस भोगी।
लाखन सारन काज, बिमल मन करतसँयोगी।
कवि 'प्रीतम' जग बंधु वर, ब्रज रच्छक स्यामल बरन।
दु:ख हरण असरन सरन, जय-जय-जय गिरिवर धरन।।