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श्री गोपाल वन्दना / यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'

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सौने कौ मुकुट मोर चन्द्रिका ढरारी सीस,
तिलक बिछौना खौर किसरिया भाल पै।

कुंडल कपोल बिच कुंतल अलक ढ़री,
परी-परी डोलें मनों पन्नगी सु ताल पै।

कंठ लर हार भुजबंद भुज सोहें अति,
कंकन कर किंकिनी कटि की उछाल पै।

'प्रीतम' पिताम्बर औ नूपुरन छटा हेरि,
बारी मन होत बेरि-बेरि या गुपाल पै।।