पद काव्य रचना की गेय शैली है।
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- करत विचित्र चरित्र नित परम मधुर नँदलाल / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- करतलसों ताली देत, राम मुख बोली / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- करता तुम्हें प्रणाम भक्ति से / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- करते कभी छेड़ अति प्यारी / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- करना कुछ तुझको बिहार आँखों से / बिन्दु जी
- करना तुम मत नाश कभी यह / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- करम गति टारै नाहिं टरी / कबीर
- कराल कलिकाल में जो तेरा / बिन्दु जी
- करि की चुराई चाल, सिंह को चुरायो कटि / बेनी
- करि कै जु सिंगार अटारी चढी / गँग
- करी मेरे मोहन की होय / स्वामी सनातनदेव
- करुणामय! उदार चूड़ामणि! प्रभु! / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- करूँ कुछ भी, कहूँ कुछ भी / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- करें कभी कोई मेरा अति / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- करो प्रभु! ऐसी दृष्टि-प्रदान / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- करौ कृपा श्रीराधिका, बिनवौं बारंबार / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- करौ, प्रभु! ऐसी कृपा महान / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- कर्त्तार-कीर्तन / नाथूराम शर्मा 'शंकर'
- कर्म राज्य से उच्च स्तर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- कल नाहिं पड़त जिस / मीराबाई
- कलित कल्पतरु-कुंज सुगंधित / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- कहत जसोदा सब सखियन सों / कृष्णदास
- कहत श्याम मेरे नहीं तुम बिन कोऊ आन / सुन्दरकुवँरि बाई
- कहत स्याम निज मुख / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- कहता है ये दौलत कभी आएगी मेरे काम / बिन्दु जी
- कहन लागे मोहन मैया मैया / सूरदास
- कहने लगे राधिका से फिर कर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- कहा करौ बैकुंठहि जाय / परमानंददास
- कहा करौं वह मूरति जिय ते न टरई / कुम्भनदास
- कहा कहूँ मेरे पिउ की बात / दरिया साहब
- कहा कहों कछु समुझि परै ना / स्वामी सनातनदेव
- कहा यह हरिजू! तुमने ठानी / स्वामी सनातनदेव
- कहा-कहा कहि मन समझाऊँ / स्वामी सनातनदेव
- कहाँ गये तुम, कहाँ छिपे / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- कहाँ तुच्छ सब, कहाँ महत् तुम / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- कहाँ वयस सुकुमार वत्स / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- कहाँ, कहाँ? किस तरफ जा रहा / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- कहां लौं बरनौं सुंदरताई / सूरदास
- कहावत ऐसे दानी दानि / सूरदास
- कहिबे को ब्यथा सुनिबे को हँसी / बोधा
- कहियौ जसुमति की आसीस / सूरदास
- कहियौ, नंद कठोर भये / सूरदास
- कहु का ना छुटी बा भजे के हरि नमवा / दरसन दास
- क़ैद दुनिया जिस अजब जादू की है टोने की है / बिन्दु जी
- का कहि अपनी व्यथा सुनाऊँ / स्वामी सनातनदेव
- का जरत त्रिविध जड़, धुँआ ना धँधोरी / लछिमी सखी
- का ले जैबो, ससुर घर ऐबो / कबीरदास
- काँचनाद्रि-कमनीय कलेवर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- काट फंद हे गोविन्द ! / शिवदीन राम जोशी
- काटि कसइली मिलाइ के चूना तहाँ हम बैठि के पान लगाइब / मन्नन द्विवेदी 'गजपुरी'
- कानन नव निकुंज अति सोहनि / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- काननि सुनौं स्याम की मुरली / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- कान्ति धवल कर्पूर-कुंद-सम / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- कान्ह की बाँकी चितौनी चुभी / मुबारक
- कान्ह बर धर्यौ बिनोदिनि रूप / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- कान्ह बर मेरे जीवन-प्रान / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- कान्हा पिचकारी मत मार मेरे / घासीराम
- कापर ढोटा नयन नचावत / परमानंददास
- काम के उच्च नीच स्वरूप / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- काम-क्रोध, लोभ-मद-मत्सर-ईर्ष्या / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- काम-क्रोध-लोभ-मद-विरहित / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- कामगन्धसे शून्य सर्वथा / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- कारी कूर कोकिला / घनानंद
- कारे कारे तम कैसे पीतम सुधारे विधि / केशव
- काल हो गया अतिशय शोभन / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- कालमेघ-श्यामल-तनु शोभित / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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