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श्वेत श्याम / लावण्या शाह

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रात दिवस, श्वेत श्याम,
एक उज्ज्वल, दूजा घन तमस
बीच मेँ फैला इन्द्रधनुष,
उजागर, किरणों का चक्र,
एक सूर्य के आगमन पर,
उसके जाते सब अन्तर्ध्यान!
तमस , जडता का फैलता साम्राज्य !
चन्द्र दीप, काले काले आसमाँ पर,
तारोँ नक्षत्रों की टिमटिमाहट,
सृष्टि के पहले, ये कुछ नहीं था -
सब कुछ ढँका था एक अँधेरे मेँ,
स्वर्ण गर्भ, सर्व व्यापी, एक ब्रह्म
अणु अणु मेँ विभाजित, शक्ति-पुंज !
मानव, दानव, देवता, यक्ष, किन्नर,
जल थल नभ के अनगिनत प्राणी,
सजीव निर्जीव, पार्थिव अपार्थिव
ब्रह्माण्ड बँट गया कण क़ण मेँ जब,
प्रतिपादीत सृष्टि ढली संस्कृति में तब !