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सँभल, अपने दिल की पुकार पर / दरवेश भारती

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सँभल, अपने दिल की पुकार पर, न भटक इधर न भटक उधर
कि तू बन खुद अपना ही राहबर, किसी और पर तू न रख नज़र

कोई ग़ैर तुझको बुरा कहे, कभी ध्यान अपना न उसपे दे
है फ़राखदिल तू इसी लिए किये जा सदा उसे दरगुज़र

वो भी हैं सवालों में अब घिरे जो फ़क़ीरी बाने में हैं सजे
कोई तो जवाब में कुछ कहे कि वो पाकदामनी है किधर

जहाँ तक ये दोनों से हो सका, वहाँ तक तो रिश्ता निभा लिया
कोई ग़म न कर मेरे हमनवा, वो तेरी डगर, ये मेरी डगर

ये कहाँ किसी के भी बस में था, मुझे क्या मिला तुझे क्या मिला
ये तो अपना-अपना नसीब है, मिली शाम मुझको तुझे सहर

हमें जो भी कहना था कह चुके, तुम्हें जो भी करना था कर चुके
हमें अब है रहना खमोशी से, न मिलेगा कुछ भी तो बोलकर

लिये बेशुमार रफ़ीक़ों को, चला इल्मो-फ़न की डगर पे जो
सभी उसको मिलके दुआएँ दो, हो सफ़र ये रौशनी का सफ़र