भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संकल्प हाम्रो फलोस् / लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:05, 24 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


संसारै घुमियो भएर विषयी मीठो विषै पो पिएँ,
लेख्थें धेर वितर्क तर्क मनमा उल्टो भई पो जिएँ,
आयो धेर तनै प्रलय भो आगो जल्यो लौ जलोस्,
भावै मात्र फिंजे तथापि ‘सबकोकल्प्सङहाम्रो फलोस्’ ।