Last modified on 2 नवम्बर 2009, at 00:15

संकेत / श्रीकान्त जोशी

दिशाएँ संज्ञाहीन होने को हैं
संकेत जग रहे हैं।
एक होगी हर दिशा की नियति
बन्दूकें ज़मीन से सूर्य तक
सन्नाटों की खेती करेंगी।
शब्द
उच्चारण से पहले तहख़ानों में होंगे
सच, ज़लील कुत्ते-सा
दुम हिलाता दिखाई देगा
झूठ की ड्योढ़ी पर
भूख, समस्या नहीं होगी समाधान
आदमख़ोरों के लिए
ठहरकर देखो
इरादे, भट्टियों में सुलग रहे हैं
दिशाएँ संज्ञाहीन होने को हैं
संकेत जग रहे हैं!