भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संकेत / श्रीकान्त जोशी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:15, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीकान्त जोशी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> दिशाएँ संज्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिशाएँ संज्ञाहीन होने को हैं
संकेत जग रहे हैं।
एक होगी हर दिशा की नियति
बन्दूकें ज़मीन से सूर्य तक
सन्नाटों की खेती करेंगी।
शब्द
उच्चारण से पहले तहख़ानों में होंगे
सच, ज़लील कुत्ते-सा
दुम हिलाता दिखाई देगा
झूठ की ड्योढ़ी पर
भूख, समस्या नहीं होगी समाधान
आदमख़ोरों के लिए
ठहरकर देखो
इरादे, भट्टियों में सुलग रहे हैं
दिशाएँ संज्ञाहीन होने को हैं
संकेत जग रहे हैं!