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संक्षिप्त है इतिहास / राजा होलकुंदे

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संक्षिप्त है इतिहास
चलकर आने वाले भविष्य का,
खेतों के किनारों से,
पहाड़ पर से उतरने वाली पगडंडी
छलाँग लगा रही है,
विशाल पक्षी के पंख सरीखी,
फिर से भविष्य के लिए ही
पूरी एकाग्रता से जीए हुए क्षणों का
बोझ कंधों पर लेकर !
वैसे यह समय ही
समझौतों का है,
फटी हुई ज़मीन के लिए
लड़ने का क्या फ़ायदा ?
वह तो कभी की
पैरों तले से खिसक गई है
और स्वतंत्रता
हाथ से निकल गई है ।
बावजूद इसके
प्रत्येक के शरीर पर
दिखाई दे रहे हैं आनन्द के कर्म
मनुष्य होने का अब एक ही अर्थ बचा है,
आप झुंड में ही अपने परिवार में रह सकते हैं
अथवा बहुमत से
किसी भी बस्ती में
या किसी भी शहर में


मूल मराठी से सूर्यनारायण रणसुभे द्वारा अनूदित