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संख्याएँ / नरेश सक्सेना

No change in size, 10:02, 24 फ़रवरी 2021
<poem>
शब्द तो आए बहुत बाद में
संख्याएँ सँख्याएँ हमारे साथ जन्म से ही हैं
गर्भ में जब
निर्माण हो रहा था हमारी हड्डियों का
रक्तकणों और कोशिकाओं का
साथ-साथ संख्याएँ सँख्याएँ भी निर्मित होती जा रही थीं
एक हमारी देह की इकाई की वो संख्या सँख्या हैजिसमें समाहित हैं सारी संख्याएँसँख्याएँ
दो आँखों में स्थित है दो
तीन है उँगलियों के तीन जड़ों में
इस दुनिया की शुरुआत
मैंने तो शुरु शुरू में ही कही थी यह बात
कि सँख्याएँ शब्दों की पूर्वज हैं
शब्द तो आए बहुत बाद में
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