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संपर्क में तो बहुत से आये / अशेष श्रीवास्तव

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"संपर्क" में तो बहुत से आये
" सम्बंध' कुछ ही से बन पाये...

बातें बहुतों से कर आये
समझ मगर कुछ ही पाये...

दुकान बहुत देखने आये
खरीददार पर कुछ ही आये...

तीर्थ स्नान बहुत कर आये
मन का मैल नहीं धो पाये...

अच्छी बात ख़ूब कर आये
अच्छे मगर नहीं बन पाये...

ऐसा लगा जब भी तुम आये
कड़कती धूप में बदरा छाये...

खुशियों के मौके कई आये
दुख ही जाने क्यों मन भाये...

पर दोषों में नज़र लगाये
अपने दोष से नज़र हटाये...

मुश्किल आना है तो आये
अपने तो ईश्वर हैं सहाये...

उम्र बढ़े जीवन घट जाये
लोभ मोह पर बढ़ता जाये...

सबको सब कभी ना भावे
अच्छा लगे जो करता जाये...

सबकी सुने सब के मन भाये
अपनी बात मन में ही छुपाये...

सुकूँ ढूँढते जहाँ घूम आये
लौट के बुध्दू घर को आये...

अपने काम 'से' बहुत से आये
अपने काम 'में' तुम ही आये...