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संशय / त्रिलोचन

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         नयन की रसधार
सुरभि के संस्पर्श में
         कहती पुकार पुकार —
मैं नदी, तुम कूल-तरु
निर्मूल दूर — विचार
भेद नव होना असम्भव
जब तुम्हीं आधार
         कर लो धार का उद्धार ।