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"संसार किसका है / श्रीनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर

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क्यों न आ पड़े विपत हजार।
 
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उसका ही है यह संसार
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16:19, 5 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण

जिसने बात न की तारों से,
जब रहती है दुनिया सोती।
जिसने प्रातः काल न देखा,
हरी घास पर बिखरे मोती।
घटा घनों की , छटा वनों की,
जिसने चित्त से दिया उतार।
उसके लिये अँधेरा जग है,
उसकी ऑंखें हैं बेकार।
छोटे से छोटे प्राणी का घर,
जिसने देखा भाला।
भेदभाव से भरा नहीं जो,
प्रिय न जिसे कुंजी ताला।
फूलों सा जो हँसता हरदम,
क्यों न आ पड़े विपत हजार।
वह इस दुनियां का राजा है,
उसका ही है यह संसार।