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सख़ारोव के निर्वासन पर / रणजीत

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समाजवादी व्यवस्था एक माँ है
बूढ़ी और डरपोक
अपने बच्चों से बहुत प्यार करती है
उनके खाने-पीने और ओढ़ने-पहनने की पूरी व्यवस्था
भली भाँति करती है
पर लगातार डरती है
कि कहीं पड़ोसी उसके बच्चों को बहका न दें
इसलिए उन्हें गली-मुहल्ले में घूमने नहीं देती
किसी पड़ोसी से बात नहीं करने देती
कोई बच्चा कभी मौका पाकर
किसी से थोड़ी देर बतिया ले
तो वह आग बबूला हो जाती है:
- जरूर उसने घर का कोई भेद उसे बता दिया होगा -
वह उसे पकड़ लाती है
लम्बी पूछ-ताछ करती है
और डपट कर घर की किसी अँधेरी कोठरी में बंद कर देती है।

वह यह नहीं सोचती
कि बच्चे अब जवान हो गए हैं
उन्हें इस तरह घर की चारदीवारी में बंद रखना
अब मुश्किल है।

वे उसके उपदेश सुनते हैं
और मुँह बिचका देते हैं
कभी-कभी तो कोई
टके-सा जवाब भी दे देता है
और वह बेहद चिढ़-चिढ़ी हो जाती है ।
ज़रूर उसके लालन-पालन के ढंग में ही कोई खोट है।

उसे जानना चाहिए
कि जवान लड़के-लड़कियों को
यों छोटे बच्चों की तरह बचा-बचा कर रखने की कोशिश
ख़ुद कितनी बचकानी है।