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सखी, ई शरदोॅ के भोर / कुमार संभव

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सखी, ई शरदोॅ के भोर

पिय के बाँही में छैलौं लिपटलोॅ
शांत छेलै मन हमरोॅ अकुलैलोॅ,
तपलोॅ देहोॅ के जबेॅ छूबी देलकै हुनी
सेवाती चातक के प्यास बुझी गेलोॅ,
विहँसी गेलै मन मोर
सखी, ई शरदोॅ के भोर।

जाड़ा भर पिया जावेॅ नै देबै
जेनां होतै तेनां राखियै लेबै,
ई शरदोॅ में साथ पिया के रहबै
साथैं कमैबेॅ, साथैं जीबै-मरबै,
तन मन होतै विभोर
सखी, ई शरदोॅ के भोर।

पूस-माघोॅ के कुहरा सताबै
पछिया पूरबा हमरा डराबै,
ऐन्हाँ में जबेॅ छोड़ौं बिछौना
जागी पिया खीचीं अंग लगाबै,
सुख के ओर न छोर
सखी, ई शरदोॅ के भोर।