सच्चा फ़क़ीर आज तक बूढ़ा नहीं हुआ
देखो कबीर आज तक बूढ़ा नहीं हुआ।
'रांझे' की वो जो सच्ची मुहब्बत के साथ है
वह नाम 'हीर' आज तक बूढ़ा नहीं हुआ।
इस दिल पे मेरे तुमने जो छोड़ा था पहली बार
नज़रों का तीर आज तक बूढ़ा नहीं हुआ।
होली के दिन जो तुमने मला मेरे गाल पर
बस वह अबीर आज तक बूढ़ा नहीं हुआ।
है गोद में यशोदा की, या राधिका के साथ
बस इक अहीर आज तक बूढ़ा नहीं हुआ।
सबके दिलों पे जिसने शराफत की, प्यार की
खींची लकीर आज तक बूढ़ा नहीं हुआ।
धरती के काम आया जो हरदम जवाँ रहा
झरनों का नीर आज तक बूढ़ा नहीं हुआ।
सूरज की तरह जिसने दी दुनिया को रौशनी
वो राहगीर आज तक बूढ़ा नहीं हुआ।
बूढ़ी न हुई जो ' कुँअर' वह तो है आत्मा
किसका शरीर आज तक बूढ़ा नहीं हुआ।