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सच्ची श्रद्धा व सबूरी की सदारत देखी / नवीन सी. चतुर्वेदी

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सच्ची श्रद्धा व सबूरी की सदारत देखी
मैं जो शिर्डी को गया मैंने ये जन्नत देखी

कोई मुज़रिम न सिपाही न वक़ीलों की बहस
ऐसी तो एक ही साहिब की अदालत देखी

गोया चूमा हो तसल्ली ने हरिक चहरे को
उस के दरबार में साकार मुहब्बत देखी

बीसियों श़क्लों में हर और से मिट्टी की तरह
उस के चरणों से लिपटती हुयी दौलत देखी

जैसे ही सोचा फिर इक बार यहाँ आना है
उस की नज़रों में भी फिर मिलने की चाहत देखी