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तुमने छुआ, जगा मन मेरा
 सच कहता हूं हूँ मैं 
मेरा तो अब हुआ सबेरा
सच कहता हूँ मैं ।
सच कहता हूं मैं  काया पलट गयी गई मेरी दिनचर्या बदल गयीगईजैसे कोई फांस फंसी फाँस फँसी थी खुद ख़ुद ही निकल गयीगई खूब ख़ूब मिला तू रैन-बसेरा सच कहता हूं मैं।  सारी उलझन सुलझ गयी हैहूँ मैं ।
सारी उलझन सुलझ गई है
तेरे दर्शन से
 
मेरे मन में समा गया तू
 
मन के दर्पण से
मैं हूं हूँ तेरा सांप संपेरासाँप-सँपेरासच कहता हूं हूँ मैं  
आधा-तीहा नहीं रहा मैं
 
पूरमपूर हुआ
 
जैसा बाहर वैसा भीतर
 
मैं भरपूर हुआ
 हुई रोशनी, छंटा अंधेराछँटा अँधेरासच कहता हूं मैं।हूँ मैं ।</poem>
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