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सच कहूं तो है यही उम्मीद की असली वजह / विनय कुमार

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सच कहूं तो है यही उम्मीद की असली वजह।

दिल अभी अपनी जगह है, सर अभी अपनी जगह।

क्यों नहीं सिज़दे मिलें सूरज बहादुर आपको है रुपहली आपसे बीमार पानी का सतह।

रात भर जलता रहा क्या माँद जैसी रात में आँख जैसे ही खुली अंगार सी टपकी सुबह।

खून से गुज़री ज़माने के दुखों की रोशनी वक़्त का कागज़ न मैं, मेरा नहीं कौसे कुजह।

रास्ते बच्चे बना लेंगे बड़े आराम से सिर्फ़ इतना कर गुज़र दीवार को दीवार कह।

सोचता हूं जंग की शुरूआत खुद से ही करू हो गया हूं आजकल मैं भी तुम्हारी ही तरह।