भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सच का शंख / मनोज श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
Dr. Manoj Srivastav (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:22, 25 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> '''सच का शंख'''…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सच का शंख

सच
सिर्फ
और सिर्फ
एक छोटा शंख है
जो किसी नदी
या सागर-महासागर
के नितांत एकाकी तल पर
मिट्टी में सना
पड़ा हुआ है

सच का शंख
पूरी ताकत से फूंको,
नहीं बजेगा
और बजेगा भी
तो बहुत धीमा

यकीनना!
धीमी बजने वाली
हर चीज
हवा और प्रदूषण में
इस कदर घुल-मिल जाती है
कि उसमें आवाज़ बुनाने का
दमखम नहीं रह जाती

लिहाज़ा
सच के शंख को
ढूंढेगा कौन

अगर ढूंढ भी लिया
तो उसे बजाएगा कौन

और अगर बजा भी
तो उसे सुनेगा कौन

सच का शंख बजाने के लिए
सबसे पहले
ताकत तलाशनी होगी

उसे सुनने के लिए
मन का कपाट
खोलना होगा.