भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सच न बोलना / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 6 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
कवि: [[नागार्जुन]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:नागार्जुन]]
+
|रचनाकार=नागार्जुन
 +
|संग्रह=हज़ार-हज़ार बाहों वाली / नागार्जुन
 +
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<Poem>
 +
मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को,
 +
डण्डपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को !
 +
जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बाँस दिखा !
 +
सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा !
  
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
+
जन-गण-मन अधिनायक जय हो, प्रजा विचित्र तुम्हारी है
 +
भूख-भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी है !
 +
बन्द सेल, बेगूसराय में नौजवान दो भले मरे
 +
जगह नहीं है जेलों में, यमराज तुम्हारी मदद करे ।
  
मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को,<br>
+
ख़याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी का, रोटी का,
डंडपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को!<br>
+
फाड़-फाड़ कर गला, न कब से मना कर रहा अमरीका !
जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बांस दिखा!<br>
+
बापू की प्रतिमा के आगे शंख और घड़ियाल बजे !
सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा!<br><br>
+
भुखमरों के कंकालों पर रंग-बिरंगी साज़ सजे !
  
जन-गण-मन अधिनायक जय हो, प्रजा विचित्र तुम्हारी है<br>
+
ज़मींदार है, साहूकार है, बनिया है, व्योपारी है,
भूख-भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी है!<br>
+
अन्दर-अन्दर विकट कसाई, बाहर खद्दरधारी है !
बंद सेल, वेगूसराय में नौजवान दो भले मरे<br>
+
सब घुस आए भरा पड़ा है, भारतमाता का मन्दिर
जगह नहीं है जेलों में, यमराज तुम्हारी मदद करे। <br><br>
+
एक बार जो फिसले अगुआ, फिसल रहे हैं फिर-फिर-फिर !
  
ख्याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी का, रोटी का,<br>
+
छुट्टा घूमें डाकू गुण्डे, छुट्टा घूमें हत्यारे,
फाड़-फाड़ कर गला, न कब से मना कर रहा अमरीका!<br>
+
देखो, हण्टर भांज रहे हैं जस के तस ज़ालिम सारे !
बापू की प्रतिमा के आगे शंख और घड़ियाल बजे!<br>
+
जो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगा,
भुखमरों के कंकालों पर रंग-बिरंगी साज़ सजे!<br><br>
+
काल कोठरी में ही जाकर फिर वह सत्तू घोलेगा !
  
ज़मींदार है, साहुकार है, बनिया है, व्योपारी है,<br>
+
माताओं पर, बहिनों पर, घोड़े दौड़ाए जाते हैं !
अंदर-अंदर विकट कसाई, बाहर खद्दरधारी है!<br>
+
बच्चे, बूढ़े-बाप तक न छूटते, सताए जाते हैं !
सब घुस आए भरा पड़ा है, भारतमाता का मंदिर<br>
+
मार-पीट है, लूट-पाट है, तहस-नहस बरबादी है,
एक बार जो फिसले अगुआ, फिसल रहे हैं फिर-फिर-फिर!<br><br>
+
ज़ोर-जुलम है, जेल-सेल है। वाह खूब आज़ादी है !
  
छुट्टा घूमैं डाकू गुंडे, छुट्टा घूमैं हत्यारे,<br>
+
रोज़ी-रोटी, हक की बातें जो भी मुँह पर लाएगा,
देखो, हंटर भांज रहे हैं जस के तस ज़ालिम सारे!<br>
+
कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा !
जो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगा,<br>
+
नेहरू चाहे जिन्ना, उसको माफ़ करेंगे कभी नहीं,
काल कोठरी में ही जाकर फिर वह सत्तू घोलेगा!<br><br>
+
जेलों में ही जगह मिलेगी, जाएगा वह जहाँ कहीं !
  
माताओं पर, बहिनों पर, घोड़े दौड़ाए जाते हैं!<br>
+
सपने में भी सच न बोलना, वर्ना पकड़े जाओगे,
बच्चे, बूढ़े-बाप तक न छूटते, सताए जाते हैं!<br>
+
भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुँचो, मेवा-मिसरी पाओगे !
मार-पीट है, लूट-पाट है, तहस-नहस बरबादी है,<br>
+
माल मिलेगा रेत सको यदि गला मजूर-किसानों का,
ज़ोर-जुलम है, जेल-सेल है। वाह खूब आज़ादी है! <br><br>
+
हम मर-भुक्खों से क्या होगा, चरण गहो श्रीमानों का !
 
+
</poem>
रोज़ी-रोटी, हक की बातें जो भी मुंह पर लाएगा,<br>
+
कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा!<br>
+
नेहरू चाहे जिन्ना, उसको माफ़ करेंगे कभी नहीं,<br>
+
जेलों में ही जगह मिलेगी, जाएगा वह जहां कहीं!<br><br>
+
 
+
सपने में भी सच न बोलना, वनो पकड़े जाओगे,<br>
+
भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुंचो, मेवा-मिसरी पाओगे!<br>
+
माल मिलेगा रेत सको यदि गला मजूर-किसान का,<br>
+
हम मर-भुक्खों से क्या होगा, चरण गहो श्रीमानों का!<br><br>
+

13:15, 4 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण

मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को,
डण्डपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को !
जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बाँस दिखा !
सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा !

जन-गण-मन अधिनायक जय हो, प्रजा विचित्र तुम्हारी है
भूख-भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी है !
बन्द सेल, बेगूसराय में नौजवान दो भले मरे
जगह नहीं है जेलों में, यमराज तुम्हारी मदद करे ।

ख़याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी का, रोटी का,
फाड़-फाड़ कर गला, न कब से मना कर रहा अमरीका !
बापू की प्रतिमा के आगे शंख और घड़ियाल बजे !
भुखमरों के कंकालों पर रंग-बिरंगी साज़ सजे !

ज़मींदार है, साहूकार है, बनिया है, व्योपारी है,
अन्दर-अन्दर विकट कसाई, बाहर खद्दरधारी है !
सब घुस आए भरा पड़ा है, भारतमाता का मन्दिर
एक बार जो फिसले अगुआ, फिसल रहे हैं फिर-फिर-फिर !

छुट्टा घूमें डाकू गुण्डे, छुट्टा घूमें हत्यारे,
देखो, हण्टर भांज रहे हैं जस के तस ज़ालिम सारे !
जो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगा,
काल कोठरी में ही जाकर फिर वह सत्तू घोलेगा !

माताओं पर, बहिनों पर, घोड़े दौड़ाए जाते हैं !
बच्चे, बूढ़े-बाप तक न छूटते, सताए जाते हैं !
मार-पीट है, लूट-पाट है, तहस-नहस बरबादी है,
ज़ोर-जुलम है, जेल-सेल है। वाह खूब आज़ादी है !

रोज़ी-रोटी, हक की बातें जो भी मुँह पर लाएगा,
कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा !
नेहरू चाहे जिन्ना, उसको माफ़ करेंगे कभी नहीं,
जेलों में ही जगह मिलेगी, जाएगा वह जहाँ कहीं !

सपने में भी सच न बोलना, वर्ना पकड़े जाओगे,
भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुँचो, मेवा-मिसरी पाओगे !
माल मिलेगा रेत सको यदि गला मजूर-किसानों का,
हम मर-भुक्खों से क्या होगा, चरण गहो श्रीमानों का !