भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सच न बोलना / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<Poem>
 
<Poem>
 
मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को,
 
मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को,
डंडपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को!
+
डण्डपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को !
जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बांस दिखा!
+
जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बाँस दिखा !
सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा!
+
सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा !
  
 
जन-गण-मन अधिनायक जय हो, प्रजा विचित्र तुम्हारी है
 
जन-गण-मन अधिनायक जय हो, प्रजा विचित्र तुम्हारी है
भूख-भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी है!
+
भूख-भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी है !
बंद सेल, बेगूसराय में नौजवान दो भले मरे
+
बन्द सेल, बेगूसराय में नौजवान दो भले मरे
जगह नहीं है जेलों में, यमराज तुम्हारी मदद करे।
+
जगह नहीं है जेलों में, यमराज तुम्हारी मदद करे ।
  
ख्याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी का, रोटी का,
+
ख़याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी का, रोटी का,
फाड़-फाड़ कर गला, न कब से मना कर रहा अमरीका!
+
फाड़-फाड़ कर गला, न कब से मना कर रहा अमरीका !
बापू की प्रतिमा के आगे शंख और घड़ियाल बजे!
+
बापू की प्रतिमा के आगे शंख और घड़ियाल बजे !
भुखमरों के कंकालों पर रंग-बिरंगी साज़ सजे!
+
भुखमरों के कंकालों पर रंग-बिरंगी साज़ सजे !
  
ज़मींदार है, साहुकार है, बनिया है, व्योपारी है,
+
ज़मींदार है, साहूकार है, बनिया है, व्योपारी है,
अंदर-अंदर विकट कसाई, बाहर खद्दरधारी है!
+
अन्दर-अन्दर विकट कसाई, बाहर खद्दरधारी है !
सब घुस आए भरा पड़ा है, भारतमाता का मंदिर
+
सब घुस आए भरा पड़ा है, भारतमाता का मन्दिर
एक बार जो फिसले अगुआ, फिसल रहे हैं फिर-फिर-फिर!
+
एक बार जो फिसले अगुआ, फिसल रहे हैं फिर-फिर-फिर !
  
छुट्टा घूमें डाकू गुंडे, छुट्टा घूमें हत्यारे,
+
छुट्टा घूमें डाकू गुण्डे, छुट्टा घूमें हत्यारे,
देखो, हंटर भांज रहे हैं जस के तस ज़ालिम सारे!
+
देखो, हण्टर भांज रहे हैं जस के तस ज़ालिम सारे !
 
जो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगा,
 
जो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगा,
काल कोठरी में ही जाकर फिर वह सत्तू घोलेगा!
+
काल कोठरी में ही जाकर फिर वह सत्तू घोलेगा !
  
माताओं पर, बहिनों पर, घोड़े दौड़ाए जाते हैं!
+
माताओं पर, बहिनों पर, घोड़े दौड़ाए जाते हैं !
बच्चे, बूढ़े-बाप तक न छूटते, सताए जाते हैं!
+
बच्चे, बूढ़े-बाप तक न छूटते, सताए जाते हैं !
 
मार-पीट है, लूट-पाट है, तहस-नहस बरबादी है,
 
मार-पीट है, लूट-पाट है, तहस-नहस बरबादी है,
ज़ोर-जुलम है, जेल-सेल है। वाह खूब आज़ादी है!  
+
ज़ोर-जुलम है, जेल-सेल है। वाह खूब आज़ादी है !
  
रोज़ी-रोटी, हक की बातें जो भी मुंह पर लाएगा,
+
रोज़ी-रोटी, हक की बातें जो भी मुँह पर लाएगा,
कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा!
+
कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा !
 
नेहरू चाहे जिन्ना, उसको माफ़ करेंगे कभी नहीं,
 
नेहरू चाहे जिन्ना, उसको माफ़ करेंगे कभी नहीं,
जेलों में ही जगह मिलेगी, जाएगा वह जहां कहीं!
+
जेलों में ही जगह मिलेगी, जाएगा वह जहाँ कहीं !
  
 
सपने में भी सच न बोलना, वर्ना पकड़े जाओगे,
 
सपने में भी सच न बोलना, वर्ना पकड़े जाओगे,
भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुंचो, मेवा-मिसरी पाओगे!
+
भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुँचो, मेवा-मिसरी पाओगे !
 
माल मिलेगा रेत सको यदि गला मजूर-किसानों का,
 
माल मिलेगा रेत सको यदि गला मजूर-किसानों का,
हम मर-भुक्खों से क्या होगा, चरण गहो श्रीमानों का!
+
हम मर-भुक्खों से क्या होगा, चरण गहो श्रीमानों का !
 
</poem>
 
</poem>

13:15, 4 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण

मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को,
डण्डपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को !
जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बाँस दिखा !
सभी कट गए सुना, देश को पुलिस रही सबक सिखा !

जन-गण-मन अधिनायक जय हो, प्रजा विचित्र तुम्हारी है
भूख-भूख चिल्लाने वाली अशुभ अमंगलकारी है !
बन्द सेल, बेगूसराय में नौजवान दो भले मरे
जगह नहीं है जेलों में, यमराज तुम्हारी मदद करे ।

ख़याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी का, रोटी का,
फाड़-फाड़ कर गला, न कब से मना कर रहा अमरीका !
बापू की प्रतिमा के आगे शंख और घड़ियाल बजे !
भुखमरों के कंकालों पर रंग-बिरंगी साज़ सजे !

ज़मींदार है, साहूकार है, बनिया है, व्योपारी है,
अन्दर-अन्दर विकट कसाई, बाहर खद्दरधारी है !
सब घुस आए भरा पड़ा है, भारतमाता का मन्दिर
एक बार जो फिसले अगुआ, फिसल रहे हैं फिर-फिर-फिर !

छुट्टा घूमें डाकू गुण्डे, छुट्टा घूमें हत्यारे,
देखो, हण्टर भांज रहे हैं जस के तस ज़ालिम सारे !
जो कोई इनके खिलाफ़ अंगुली उठाएगा बोलेगा,
काल कोठरी में ही जाकर फिर वह सत्तू घोलेगा !

माताओं पर, बहिनों पर, घोड़े दौड़ाए जाते हैं !
बच्चे, बूढ़े-बाप तक न छूटते, सताए जाते हैं !
मार-पीट है, लूट-पाट है, तहस-नहस बरबादी है,
ज़ोर-जुलम है, जेल-सेल है। वाह खूब आज़ादी है !

रोज़ी-रोटी, हक की बातें जो भी मुँह पर लाएगा,
कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा !
नेहरू चाहे जिन्ना, उसको माफ़ करेंगे कभी नहीं,
जेलों में ही जगह मिलेगी, जाएगा वह जहाँ कहीं !

सपने में भी सच न बोलना, वर्ना पकड़े जाओगे,
भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुँचो, मेवा-मिसरी पाओगे !
माल मिलेगा रेत सको यदि गला मजूर-किसानों का,
हम मर-भुक्खों से क्या होगा, चरण गहो श्रीमानों का !