भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सजन बिन / सरोज सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सजन बिन रतिया, खूब सतावे हमके
बनके छबि अन्हरवा, भरमावे हमके
रतिया मा रही-रही निनिया उचीक जाले
झिन्गुरवा उनका नामे,गोहरावे हमके
अब के सवनवा, ऊ अइहें जरुर एही आसे
मन के मोरवा बिन बरखा, नचावे हमके
ओरी से बहल बयार, देके सनेस उनकर
छुआ के उनकर नेहिया, सोहरावे हमके
बरखा, धरती अउर असमान के संसर्ग हवे
देखा के ई प्रीत,बुनिया रोज़ जरावे हमके
मन मत कर थोर आ जईहें सजन तोर
कोठवा पs बईठल काग समुझावे हमके