Last modified on 23 अगस्त 2009, at 02:23

सजावट की वस्तु / सुदर्शन वशिष्ठ

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:23, 23 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ |संग्रह=सिंदूरी साँझ और ख़ामोश ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जहाँ तहाँ रख दी जाती है
चिपका दी जाती है
विज्ञापन की औरत की तरह
कभी फ्रेम के भीतर
कभी बाहर
कभी दीवार पर
कभी द्वार पर।

वस्तु है
इसलिए नहीं कोई अपना अस्तित्व
टूटना है नापसन्द पर।
मजबूरी है
बेबसी है सजावट की वस्तु होना।

सजावट की वस्तु होना
दूसरों के लिये मरना भी है
कोई समझे
न समझे।