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सज्जन ढेकुल श्लेष / दीनदयाल गिरि

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गुन को गहि यहि खेत में नमैं सुबंसज दोय ।
कृसितन जीवन देत हैं पीछे गुरुता होय ।।

पीछे गुरुता होय कूप तें आदर पावैं ।
ऊँच कहैं सब कोय अमृत घट पुन्य सुहावैं ।।

बरनै दीनदयाल धन्य कहिये जग उन को ।
सहिं दुख सुख दैं सबै सरल अति हैं गहि गुन को ।। ६४।।