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"सड़कों पर बेच रही / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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जिस पर सोकर
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लड़ता है
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मौसम से रोज़
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नित-नित ये जय अपनी खोज
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यम-यम-यम करते हैं
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आँगन, घर, बाग
 
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20:45, 21 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

सड़कों पर बेच रही तंदूरी आग
मक्के की रोटी और सरसों का साग

इसको चख
आती है मिट्टी की याद
पकवानों पर भारी
है इसका स्वाद

गुड़ से तो
सदियों से इसका अनुराग

खा इसको
हल का फल होता है तेज
खेतों को कर देता
मक्खन की सेज

जिस पर सोकर
बीजक जाते हैं जाग

लड़ता है
भिड़ता है
मौसम से रोज़
लेता है
नित-नित ये जय अपनी खोज

यम-यम-यम करते हैं
आँगन, घर, बाग