Last modified on 13 अप्रैल 2018, at 09:10

सतगुरु-ज्ञान होरी / अछूतानन्दजी 'हरिहर'

सतगुरु सबहि समझावें, सबन हित होरी रचावें।
ज्ञान-गुलाल मले मन मुख पर, अद्धै अबीर लगावें।
प्रेम परम पिचकारी लेकर, सतसंग रुचि रंग लावें।
तत्व-त्यौहार मनावें॥
छल पाखंड प्रपंच धूर्तता, की धरि धूर उड़ावें।
विज्ञ विवेक विचार प्रचारें, सत्य कबीर सुनावें।
गीत गुण गौरव गावें॥
सन्त सुधार सभाएँ करके, साधु सुसीख सिखावें।
प्रचलित पक्षपात अरु उलझन, सबहि सहज सुलझावें।
द्वेष दुख द्वंद्व दबावें॥
आत्मिक लौकिक उन्नति पथ पर, चतुर सुचाल चलावें।
 'हरिहर' सबै स्वत्व रक्षित करि, मुलकी हम दिलवावें।
वंश आदिहिन्दू जगावें॥