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सतगुरु सम कोउ है नहीं, या जग में दातार / दयाबाई

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दयाबाई ने सांसारिक दुर्बलताओं से मुक्ति प्राप्त कराने वाले गुरु की महिमा का भी मनोहर वर्णन किया है-

सतगुरु सम कोउ है नहीं, या जग में दातार।
देत दान उपदेश सों, करैं जीव भव पार॥
गुरुकिरपा बिन होत नहिं, भक्ति भाव विस्तार।
जाग जज्ञ जत तप 'दया' केवल ब्रह्म विचार॥
या जग में कोउ है नहीं, गुरु सम दीन दयाल।
सरनागत कूँ जानि कै, भले करैं प्रतिपाल॥
मनसा बाचा करि 'दया' गुरु चरनों चित लाव।
जग समुद्र के तरन कूँ, नाहिन आन उपाव॥
जे गुरु कूँ बन्दन करैं 'दया' प्रीति के भाव।
आनँद मगन सदा रहैं, तिरविध ताप नसाव॥
चरन कमल गुरु देव के, जे सेवत हित लाय।
 'दया' अमरपुर जात हैं, जग सुपनों बिसराय॥
सतगुरु बह्म सरूप हैं मनुप भाव मत जान।
देह भाव मानैं 'दया' ते हैं पसू समान॥
नित पति बन्दन कीजिये, गुरु कूँ सीस नवाय।
 'दया' सुखी कर देत हैं, हरि स्वरूप दरसाय॥