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सतरह / आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'

सीते! कह दो राम से, पर्णकुटी सुख धाम!
मैं मृग बढ़ कर आ रही, सोजाओं श्री राम!

सावधान हो लखन! खीचती हूँ मैं एक लकीर
“कहि कहि विपिन कथा दुख नाना” माँगों उनसे तीर

सो जाओ श्री राम और मैं हूँ वीरांगना जागी
भारत माँ की वीर सपूती मैं ही ललित-ललाम
मैं मृग बढ़ कर आ रही, सो जाओ श्री राम!

पूछना मेरा पता तुम मत लता तरू बृन्द से
मैं तो शरहद पर चली आवाज आई हिन्द से

“पलंग पीठ तजि गोद हिंडोला” अब न रहूँगी
निशिचर निकर से लड़ लूँगी मैं हे ज्योति के धाम
मैं मृग बध कर आ रही, सोजाओ श्री राम!

राम धर दे धनुष, दे दे तीर तरकस
थक गई तेरी भुजाएँ, पड़ ठंडी ये नस नस


मैं नहीं अबला रही अब, युद्ध बेकाम
मैं मृग बध कर आ रही, सोजाओ श्री राम!