भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सतवन्ती न क्यो लायो पीया रे / निमाड़ी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

    सतवन्ती न क्यो लायो पीया रे,
    किनकी जान हरी लायो पीया रे,

(१) कहती मन्दोदरी सुण पीया रावण,
    या नार कहा सी लायो
    इनी रे नार क भीतर राखो
    वो तपसी दो भाई...
    पीया रे सतवन्ती...

(२) कहेता रावण सुण मंदोदरी,
    काय को करती बड़ाई
    दस रे मस्तक न बीस भुजा है
    जेक तो बल बताऊ...
    पीया रे सतवन्ती...

(३) कहती मन्दोदरी सुण पीया रावण,
    क्यो करता राम सी बुराई
    चरण धोवो चर्णामत लेवो
    नाव क पार लगाव...
    पीया रे सतवन्ती...

(४) कहत कबीरा सुणो भाई साधु,
    राखो तो चरण अधार
    जनम-जनम का दास तुम्हारा
    राखो लाज हमारी...
    पीया रे सतवन्ती...