Last modified on 31 मई 2009, at 12:59

सतीत्व / तस्लीमा नसरीन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:59, 31 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तस्लीमा नसरीन |संग्रह= }} <Poem> काया कोई छुए तो हो जा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

काया कोई छुए तो हो जाऊंगी नष्ट

हृदय छूने पर नहीं ?
हृदय देह में बसा रहता है निरंतर

काया के सोपान को पार किए बिना
जो अंतर गेह में करता है प्रवेश
वह कोई और ही होगा
पर जानती हूँ
वो मनुष्य नहीं होगा


अनुवाद : शम्पा भट्टाचार्य