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सत्यनारायण ‘कविरत्न’ / परिचय

पण्डित सत्यनारायण शर्मा ‘कविरत्न’ के पिता गोविन्दराम दुबे अलीगढ़ के कचरौली ग्राम के निवासी थे। परन्तु सत्यनारायण जी के जन्म से पहले ही उनके पिता का निधन हो गया। पिता के सम्बन्धियों ने सत्यनारायण की माँ को पति की सम्पत्ति से वंचित कर दिया। उनकी माँ सराय गाँव में जाकर बस गईं। यहीं बालक सत्यनारायण का जन्म हुआ। कालान्तर में सत्यनारायण की माँ अपने पुत्र को लेकर आगरा के पास राममंदिर में बाबा रघुवरदास की शरण में रहने लगीं और लड़कियों को पढ़ाने का काम करने लगीं। यहीं रहकर सत्यनारायण ने आगर के विभिन्न अंग्रेज़ी स्कूलों में पढ़कर एफ़०ए० (बारहवीं) तक की शिक्षा ग्रहण की।
सत्यनारायण जब सत्रह वर्ष के थे तो उनकी माँ का देहान्त हो गया। इसके बाद उनके संरक्षक रघुवारदास जी भी काल कवलित हो गए। अनमेल विवाह के कारण पत्नी के साथ भी इनका सम्बन्ध-विच्छेद हो गया। इस तरह ‘कविरत्न’ जी का सारा जीवन कष्ट और करुणामय रहा।
‘कविरत्न’ जी की ख़ासियत यह थी कि उन्होंने अंग्रेज़ी पढ़ने के बाद भी धोती, पगड़ी और मिरजई नहीं छोड़ी। खड़ी बोली का अच्छा ज्ञान होने के बावजूद वे हमेशा ब्रजभाषा में ही रचना करते रहे। देश की, मातृभूमि की वंदना, प्रशंसा और वेदना में उन्होंने दो दर्जन से अधिक कविताएँ लिखी हैं। 'हृदय तरंग' सत्यनारायण जी की कविताओं का संग्रह है। आपने 'होरेशस', 'उत्तर रामचरितम‍' और 'मालती-माधव' का भी अनुवाद किया है। हिन्दी में उनकी रचनाएँ अब 'सत्यनारायण-ग्रंथावली' में उपलब्ध हैं।