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सत्य, शिव, सुन्दर / सुरेश विमल

मिट्टी में मुंह मारता
अबोध शैशव
फावड़ों से खेलता
कमनीय नारीत्व
और
लहू-पसीने का
अंतर मिटाता हुआ
अजेय पौरुष...

जब भी देखता हूँ
यह सब
तो मन कहता है
' यही सत्य है,
यही शिव है,
यही सुन्दर है।