मिट्टी में मुंह मारता
अबोध शैशव
फावड़ों से खेलता
कमनीय नारीत्व
और
लहू-पसीने का
अंतर मिटाता हुआ
अजेय पौरुष...
जब भी देखता हूँ
यह सब
तो मन कहता है
' यही सत्य है,
यही शिव है,
यही सुन्दर है।
मिट्टी में मुंह मारता
अबोध शैशव
फावड़ों से खेलता
कमनीय नारीत्व
और
लहू-पसीने का
अंतर मिटाता हुआ
अजेय पौरुष...
जब भी देखता हूँ
यह सब
तो मन कहता है
' यही सत्य है,
यही शिव है,
यही सुन्दर है।