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सत्य / पूरन मुद्गल

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मैंने
आँखें बन्द कर लीं / हर तरफ़ से
कि / अभी नज़र आया सत्य
कहीं बिखर न जाए
रूपांतरित हो
अदृश्य न हो जाए
पल भर में / यूँ ग़ायब हो जाना
क्या सत्य का धर्म है
नहीं न
किंतु
सत्य को पकड़ने के
क्षण का
यही धर्म है
सुरक्षित रखने हेतु उस क्षण को
आँखें सहज ही मुंद जातीं
ताकि आँख खुल सके ।