Last modified on 6 दिसम्बर 2011, at 20:28

सदस्य:Bhaskar

कलम में भरी है स्याही

कलम में भरी है स्याही

पर निब में नहीं आती

झटकना पड़ता था कई बार पहले

अब तो उसका भी असर नहीं

लगता है कुछ ज्यादा ही खफ़ा है मुझसे

उसके इस रवैये से दुखी बहुत हूँ

पर गुस्सा नहीं करता मैं

कुछ देर के लिए रख देता हूँ

कुछ देर बाद उठा के पता लगाता हूँ

करता हूँ प्रयास

कि हो जाये ठीक

हो भी जाती है पर ये बताकर

कि गलती मेरी थी

फिर आगे बढ़ने लगता है

हमारा प्रेम अनवरत....!

--Bhaskar 08:57, 6 दिसम्बर 2011 (CST)................स्वरचित कविता