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सदाईं सब्ज़ रखी मूं विजूद जी खेती / एम. कमल

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सदाईं सब्ज़ रखी मूं विजूद जी खेती।
तमाम उमिरि सवालनि जा फ़सुल लुणींदो रहियुसि।

सदियुनि जी रात टिकियल जिअं जो तिअं रही क़ाइम।
सदियुनि खां सुबह जी आमद जो हुलु सुणंदो रहियुसि॥

हयाति ग़म या खु़शी सभु, गुमानु वहम हुआ।
कॾहि हू मूं खे कॾहि मां इन्हनि खे चुणंदो रहियुसि॥

का छांव रोलू तबियत खे रास न आई दोस्त।
मां झंग-झंग कॾहिं शहर-शहर भुणंदो रहियुसि॥