Last modified on 6 अगस्त 2019, at 19:30

सदा रहेंगे जागे / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:30, 6 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बृजनाथ श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

माना
सच्चाई यह,
राहों में गहन अँधेरा है

फिर भी हम लिए मशालें
और बढ़ेंगे आगे
लड़कर अँधियारों से हम
सदा रहेंगे जागे

माना
कदम-कदम पर
काँटो का हुआ बसेरा है

हम साथ चलेंगे लेकर
अपने सारे घर को
ऊँच-नीच के भेद भुला
दूर करेंगे डर को

माना
डरकर भागा
पश्चिम का नया सपेरा है

इसी बिंदु से पुन: नई हम
राह बनायेंगे
विश्व-बंधुता क्षीण हुई जो
पुन: रचायेंगे

माना
बढ़ना है तो
थोड़ा सा अभी उजेरा है