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सदियों हुए प्यार किए / संजय कुमार शांडिल्य

सदियों से प्यार को राख करती ज्वालामुखी फूटती है सुबह-शाम
ये रोटियाँ जो मेरी थाली में हैं ये सदियों पहले
की पकी रोटियाँ हैं
मेरा विश्वास करो इसे पोम्पेइ में बनाया था
किसी औरत ने जो अपने मर्द से प्यार करतीं थी
अभी रोटियाँ सिंकी ही थी चूल्हे पर
कि ज्वालामुखी ने उस थाली को पिघला दिया
जिसमें वह रोटियाँ परोसती और
अपना प्यार ।
भूख की जली हुई देह का श्राप टहल आता है
हज़ारों किलोमीटर
प्यार जो जल गया ज्वालामुखी में
उसकी राख आज भी गिरती है इस चाँदनी रात में ।
चूल्हे से सुबह-शाम फूटते है ज्वालामुखी
ख़त्म हो गया प्यार का आबाद शहर
चूल्हे के राख में लिपटी हुई तुम्हारी देह
मेरी भी और एक बरबाद हुई सभ्यता ।
मैं एक पत्थर हुआ गीत हूँ सदियों से
तुम्हारे पत्थर हुए होठों में फँसा हुआ ।
सदियों से एक सभ्यता की जली हुई लाश है
चाँद की रौशनी में यह शहर मॄत और भस्म ।
मैं तुम्हें और तुम मुझे
बिना प्रेम किए जीवित हैं हम सदियों से ।