Last modified on 5 जून 2017, at 16:47

सद्भावना / प्रदीप प्रभात

जागोॅ-जागोॅ हे भारतवासी
चारो दिस मच लौं छै त्राहि-त्राहि।
शोषित कल्पित छै मानवता
ई दानवता के आतंक मिटावों
निमुहा के छाती पर दाल दरै छै
भुखलो पियासलां केॅ पैमाल करै छै।
इन्सानों के लहुवोॅ सें
हरयैली धरती लाल करै छै।
तत्योंनी भीजै छै आंखी के कौर
हाय रे कलयुग हाय रे घोर।
यै धरती पर बहु-बेटी रोज लुटै छै
निर्दोषों के लहु रोज बहै छै।
सबके दुःख संताप मिटावो
जागो-जागो हे भारतवासी।
जिन्दा लाश लहु पर बहै
ई संसार घोर नपुंसक।
युद्ध शांति के खिस्सा साथे
ई गठरी सौंपे लें महाकाल के हाथें।
मानवता के मिलतै राहत के दान
इतिहासें करतै भारत के पहचान।
ई पन्द्रह अगस्त के ले संकल्प
असुर आतंकवाद के आतंक मिटावों।
सुक्खाों के तो बाग लगावौ
धरती पर तो स्वर्ग उतारो
सद्भावना के जय घोष करि केॅ
अमन चैन के दीप जलावो।
निर्मल गंगा धारो सैं सींची के
शांति सद्भावना के फूल उगावोॅ।