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सन्नाटा / शिवनारायण जौहरी 'विमल'

क्या किसी की बांसुरी ने
छू लिया है चांदनी का दिल
हवा कों नींद क्यों आने लगी है
पत्तियों की खडखड़ाहट बंद है
दवा कर पैर कोई आरहा है
तनाव सारे चुप खड़े हैं
सन्नाटा छाया हुआ है
क्षितिज के उस पार
कोई दुर्घटना घटी है
चाँद तारे सांस साधे
लगाए टकटकी
देखते हैं उस तरफ
सन्नाटा छाया हुआ है
झींगुर कों चुप चाप
सोने के लिए
राजी कर लिया है क्या
अमावस की रात ने
सड़क के पैर भी खामोश हे
बिचारे चल नहीं पाते
एक सन्यासी समाधिस्थ है
देह संज्ञाहीन है
मन व्यस्त है शून्य की गहराइयों में
बाहर शोर होया सन्नाटा
दोनोब्राब हैं।
देवताओं कों शयन करवा कर
पुजारी जा चुका है
सन्नाटा घुस रहा है देवघर मैं
दो प्रेमी लिपटे पड़े है कक्ष में अपने
बाहर पहरा देरहा है सन्नाटा अकेला