भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपने झूठे - वही दिलासे / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:37, 15 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बात वही है
सपने झूठे -वही दिलासे

खेल जुगनुओं के
सोने की मीनारों पर
चित्र बने महलों के
टूटी दीवारों पर

राजा के घर में
जलसे हैं - वही तमाशे

पत्थर के चेहरों पर
चिपकी हैं मुसकानें
हैं बहेलिये डाल रहे
चिड़ियों को दाने

नदी किनारे
मछली के बेटे हैं प्यासे

गुंबज के नीचे हैं
इन्द्रधनुष के डेरे
धूप-परी के आँगन में हैं
घने अँधेरे

रोज़ नये ऐलान भोर के
घिरे कुहासे