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सपने झूठे - वही दिलासे / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र
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बात वही है
सपने झूठे -वही दिलासे
खेल जुगनुओं के
सोने की मीनारों पर
चित्र बने महलों के
टूटी दीवारों पर
राजा के घर में
जलसे हैं - वही तमाशे
पत्थर के चेहरों पर
चिपकी हैं मुसकानें
हैं बहेलिये डाल रहे
चिड़ियों को दाने
नदी किनारे
मछली के बेटे हैं प्यासे
गुंबज के नीचे हैं
इन्द्रधनुष के डेरे
धूप-परी के आँगन में हैं
घने अँधेरे
रोज़ नये ऐलान भोर के
घिरे कुहासे