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सपनों के बाग़ / रणजीत

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मेरे पास नहीं है कोई चीज़ तुम्हें देने को, साथी !
मैं तो बस, केवल ख़्वाब लुटाया करता हूँ -
हर मुर्दा दिल में फिर जीवन की आग जलाया करता हूँ ।

लो, यह सपना तुम नई सुबह की लाली का
यह सपना खेतों की साझी हरियाली का
यह मिल पर सब मज़दूरों के हक़ का सपना
यह नई ज़िन्दगी और नए जग का सपना
यह दुनिया के सब लोगों के हिलमिल कर रहने का सपना
यह देशों-रंगों-नस्लों की दीवारें ढ़हने का सपना
यह मंदिर-मस्जिद-चकलों-पागलखानों बिना
समाज चलाने का सपना
यह जेल-कचहरी, फौज-पुलिस के बिना
जगत का राज चलाने का सपना

यह सपना जिसमें हर मानव स्वाधीन और सक्षम होगा
हर भेद-भाव होगा समाप्त, मानव मानव के सम होगा
ये सब सपने सच बनने को बेताब, लुटाया करता हूँ
हर मुर्दा दिल में फिर जीवन की आग जलाया करता हूँ ।

यों स्वप्न लुटाने वाले तो बहुतेरे हैं
लेकिन कुछ अलग तरह के सपने मेरे हैं
कुछ सपने बूढ़े औ’ बीमार हुआ करते हैं
कुछ लूले-लंगड़े होते हैं, बेकार हुआ करते हैं
कुछ सपने बेबस होते हैं जो महज आह भरते हैं
कुछ हिम्मत वाले चट्टानों को तोड़ राह करते हैं,
कुछ सपने मन के चोर हुआ करते हैं, छिपकर रहते हैं
कुछ सपने बाग़ी होते हैं, जो कहना हो सो कहते हैं
कुछ सपने किसी एक की कुंठाओं की सृष्टि हुआ करते हैं
कुछ सपने सारे युग-समाज की दृष्टि हुआ करते हैं

मैं लुटा रहा हूँ सबको ऐसे सपने
जो सबके साझे हैं, सबके हैं अपने
कविता की धरती पर मैं, सपनों के बाग़ लगाया करता हूँ
हर मुर्दा दिल में फिर जीवन की आग जलाया करता हूँ ।

यह जीवन क्या है? कुछ सपनों का मेला है
इंसान हमेशा सपनों से ही खेला है
ये सपने ही हैं जो उसके क़दमों की ताक़त बनते हैं
ये सपने ही हैं जो उसके तन-मन की कुव्वत बनते हैं
ये सपने ही इंसानों की रूहों को हरारत देते हैं
इंसान नहीं ये सपने ही इन्सां को बग़ावत देते हैं
ये सपने हैं जो दुनिया को हर बार सँवारा करते हैं
सपनों के बल पर लोग यहाँ हर जुल्म गवारा करते हैं
सपनों के बिना इन्सान महज कुछ साँसों का पुतला-सा है
सपने न बुलन्दी दें जो इसे, इंसान बहुत छोटा-सा है
ये सपने दिन का उजाला हैं, और सांझों के सिन्दूर हैं ये
ये सपने चाँद हैं रातों के, बेबाक सुबह के नूर हैं ये

मैं स्याह अँधेरी रातों में महताब उगाया करता हूँ
हर मुर्दा दिल में फिर जीवन की आग जलाया करता हूँ ।