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"सबके चरण गहूँ मैं / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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मेरी कोशिश  
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मेरी कोशिश
 
सूखी नदिया में-
 
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बन नीर बहूँ मैं
 
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चल पाऊँ  
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बह पाऊँ
 
उन राहों पर भी
 
उन राहों पर भी
जिनमें कंटक छहरे
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जिनमें कंटक बिखरे
तोड़ सकूँ  
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तोड़ सकूँ चट्टानों को भी
चट्टानों को भी
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गड़ी हुई जो गहरे
गड़ी हुई जो गहरे  
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हर राही
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रत्न, जवाहिर
मंजिल पा जाए
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मुझसे जन्में
ऐसी राह बनू मैं  
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इतना गहन बनू मैं
  
 
थके हुए को
 
थके हुए को
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चलकर जीवन-जल दूँ
 
चलकर जीवन-जल दूँ
 
दबे और कुचले पौधों को
 
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हरा-भरा  
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हरा-भरा
 
नव-दल दूँ
 
नव-दल दूँ
  
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सबके साथ दहूँ मैं
 
सबके साथ दहूँ मैं
  
जहाँ-जहाँ पर  
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नाव चले तो
रेत अड़ी है  
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मुझ पर ऐसी
मेरी धार बहाए  
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दोनों तीर मिलाए
नाव चले तो
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जहाँ-जहाँ पर
मुझ पर ऐसी
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रेत अड़ी है
दोनों तीर मिलाए
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मेरी धार बहाए
  
ऊसर-बंजर तक  
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ऊसर-बंजर तक
जा-जाकर  
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जा-जाकर
सबके चरण गहूँ मैं
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चरण पखार गहूँ मैं
 
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14:24, 30 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण

मेरी कोशिश
सूखी नदिया में-
बन नीर बहूँ मैं

बह पाऊँ
उन राहों पर भी
जिनमें कंटक बिखरे
तोड़ सकूँ चट्टानों को भी
गड़ी हुई जो गहरे

रत्न, जवाहिर
मुझसे जन्में
इतना गहन बनू मैं

थके हुए को
हर प्यासे को
चलकर जीवन-जल दूँ
दबे और कुचले पौधों को
हरा-भरा
नव-दल दूँ

हर विपदा में-
चिन्ता में
सबके साथ दहूँ मैं

नाव चले तो
मुझ पर ऐसी
दोनों तीर मिलाए
जहाँ-जहाँ पर
रेत अड़ी है
मेरी धार बहाए

ऊसर-बंजर तक
जा-जाकर
चरण पखार गहूँ मैं