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सबके लेखे सदा सुलभ / नागार्जुन

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गाल-गाल पर
दस-दस चुम्बन
देह-देह को दो आलिंगन
आदि सृष्टि का चंचल शिशु मैं

त्रिभुवन का मैं परम पितामह
व्यक्ति-व्यक्ति का निर्माता मैं
ऋचा-ऋचा का उद्गाता मैं
कहाँ नहीं हूँ, कौन नहीं हूँ

अजी यही हूँ, अजी वहीं हूँ
जहाँ चाहिए वहाँ मिलूँगा
स्थापित कर लो, नहीं हिलूँगा
उच्छृंखलता पर अनुशासन

दया-धरम पर मैं हूँ राशन
सबके लेखे सदा-सुलभ मैं
अति दुर्लभ मैं, अति दुर्लभ मैं
महाकाल भी निगल न पाए
वामन हूँ मैं, मैं विराट हूँ
मैं विराट हूँ, मैं वामन हूँ

(23 जनवरी 1985)