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सबके समक्ष हाथ पसारा नहीं जाता / डी. एम. मिश्र

 सबके समक्ष हाथ पसारा नहीं जाता
 जो दर्द व्यक्तिगत हो वो बॉटा नहीं जाता

 आता है सुअवसर कहाँ जीवन में बार-बार
 अच्छा हो मुहूरत तो वो टाला नहीं जाता

 ऐसा समय आयेगा ये मालूम कहाँ था
 अब वक़्त तुम्हारे बिना काटा नहीं जाता

 मुझ से ख़फ़ा यहाँ की हैं सारी हुक़ूमतें
 पर, क्या करूँ अन्याय भी देखा नहीं जाता

 होता है पाप पुन्य का इक रोज़ सब हिसाब
 इजलास पे उसके केाई बख़्शा नहीं जाता