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"सबको मालूम है मैं शराबी नहीं / अनवर फ़र्रूख़ाबादी" के अवतरणों में अंतर

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और क़सम टूट जाए तो मैं क्या करूँ
 
और क़सम टूट जाए तो मैं क्या करूँ
  
मुझ को मैं खुश समझता है सब बड़ा खुश
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मुझ को मयकश समझते हैं सब वादाकश
क्यूँ के उनकी तरह लड़खड़ाता हूँ मैं
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क्यूँकि उनकी तरह लड़खड़ाता हूँ मैं
 
मेरी रग रग में नशा मुहब्बत का है
 
मेरी रग रग में नशा मुहब्बत का है
 
जो समझ में ना आए तो मैं क्या करूँ
 
जो समझ में ना आए तो मैं क्या करूँ

07:45, 13 नवम्बर 2019 के समय का अवतरण

सब को मालूम है मैं शराबी नहीं
फिर भी कोई पिलाए तो मैं क्या करूँ
सिर्फ़ एक बार नज़रों से नज़रें मिलें
और क़सम टूट जाए तो मैं क्या करूँ

मुझ को मयकश समझते हैं सब वादाकश
क्यूँकि उनकी तरह लड़खड़ाता हूँ मैं
मेरी रग रग में नशा मुहब्बत का है
जो समझ में ना आए तो मैं क्या करूँ

हाल सुन कर मेरा सहमे-सहमे हैं वो
कोई आया है ज़ुल्फ़ें बिखेरे हुए
मौत और ज़िंदगी दोनों हैरान हैं
दम निकलने न पाए तो मैं क्या करूँ

कैसी लूट कैसी चाहत कहाँ की खता
बेखुदी में हाय अनवर खिदू(?) का नशा
ज़िंदगी एक नशे के सिवा कुछ नहीं
तुम को पीना न आए तो मैं क्या करूँ