भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सबदां री नदी मांय / नीरज दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हैं अंवेर’र राख्यो है
थारै दियोड़ो-
गुलाब ।

जद थूं दियो
म्हैं नीं जाणतो हो अरथ
उण नै लेवण रो ।

नीं जाणतो हो म्हैं
कै किणी रै ई पांती आ सकै है
अणजाण-अचाणचकै कदैई
कोई गुलाब ।

अबै थूं
म्हारै अंतस रै आंगणै
गुलाब रै उण फूल साथै जीवै है
अर म्हारै सबदां री नदी मांय
बैवै है उडीक साथै ।